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ग़ज़ल
सितमगर बाज़ क्यूँ आए मोहब्बत मेहरबाँ क्यूँ होमैं जिस के ख़्वाब देखूँ हूँ वो मेरा अरमुग़ाँ क्यूँ हो
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ग़ज़ल
कोई दर-पर्दा शायद मेहरबाँ मा'लूम होता हैकि अब हर साँस 'उम्र-ए-जावेदाँ मा'लूम होता है
नख़्शब जार्चवि
कलाम
साएमा ज़ैदी
ग़ज़ल
साएमा ज़ैदी
ग़ज़ल
अभी किया है ‘क़मर’ उन की ज़रा नज़रें तो फिरने दोज़मीं ना-मेहरबाँ होगी फ़लक ना-मेहरबाँ होगा