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सूफ़ी उद्धरण
मौत से ज़्यादा ख़ौफ़-नाक चीज़ मौत का डर है।
मौत से ज़्यादा ख़ौफ़-नाक चीज़ मौत का डर है।
वासिफ़ अली वासिफ़
दोहरा
बुल्ल्हआ काज़ी राज़ी रिशवते, मुल्लां राज़ी मौत ।
बुल्ल्हआ काज़ी राज़ी रिशवते, मुल्लां राज़ी मौत ।आशक राज़ी राग ते, ना परतीत घट होत ।
बुल्ले शाह
दोहा
बुल्लया काज़ी राज़ी रिश्वते, मुल्लां राज़ी मौत
बुल्लया काज़ी राज़ी रिश्वते, मुल्लां राज़ी मौत ।आशिक़ राज़ी राम ते, न परतीत घट होत ।।
बुल्ले शाह
गूजरी सूफ़ी काव्य
ज़ुलेख़ा का विलाप (यूसुफ़ की मौत पर)
जो उस कन मौत के मैं वक़्त आती,नैन के नीरसुं उस को बहलाती।
अमीन गुजराती
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सूफ़ी साहित्य
मौत-ए-अब्यज़
ग़ज़ल
उन्हें आ'शिक़ कहा करते हैं जो बे-मौत मरते हैंनहीं मा'लूम पहले ये किनाए किस ने बरते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
सूफ़ी उद्धरण
जो आदमी मौत से नहीं निकल सकता वो ख़ुदा से कैसे निकल सकता है।
जो आदमी मौत से नहीं निकल सकता वो ख़ुदा से कैसे निकल सकता है।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
क्यूँ न ख़ुश हूँ मौत आई मुझ को मंज़िल के क़रीबजान परवाना की निकली शम्अ'-ए-महफ़िल के क़रीब
अफ़क़र मोहानी
शे'र
जिसे कहते हैं मौत इक बे-ख़ुदी की नींद है 'शाएक़'परेशानी है जिस का नाम वो है ज़िंदगी अपनी