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राग आधारित पद
भैरवी- आओ बलम जी हमारे डेरे, अबीर गुलालमलो मुख तेरे
महमद शाह पिया चतुर रंगीले, दूर बसो और मेरे नेरे।।
मोहम्मद शाह रंगिला
सूफ़ी लेख
प्रेम और मध्ययुगीन कृष्ण भक्ति काव्य- दामिनी उत्तम, एम. ए.
जदपि अगन ते अगम अति, निगम कहत हैं जाहि। तदपि रंगीले प्रेम ते, निपट निकट प्रभु आहि।।
सम्मेलन पत्रिका
बारहमासा
बारहमाहा
सोहन मलेहारा सारे सावन, दूती दुक्ख लग्गे उट्ठ जावण,नींगरा खेडन कुड़ियां गावन, मैं घर रंग रंगीले आवण,
बुल्ले शाह
बारहमासा
श्रावण- सावन आवन कहि गए, उमँग चले बहु नीर।
जिस वख्त डाला था हिंडोला पी रंगीले बाग में।उस वक्त तू क्यों ना गई भर रंग अपनी मांग में।
खैरा शाह
होली
केहूँ के समझाए सिखाए मोहन चूनर हम से छीनीरंग रंगीले तोरे खेल में देखे बातें देखीं बहुतेरी
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
होरी
कैसो रचो री रंग होरी अजमेर ख़्वाजा
या रसिया की निर्मल मूरत जोति रूप बनो रीऐसे रंगीले नबी से लागी 'नियाज़' की मन की रोरी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
राग आधारित पद
छा रही ऊदी घटा जियरा मोरा घबराए है
अपनी सेजों पर न रखा मा रंगीले फूल कोतुम न आए बगिया में रुत आए है रत जाये है