आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया"
शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
मल्फ़ूज़
बाबा फ़रीद
ना'त-ओ-मनक़बत
हर मुसाफ़िर से मैं ख़ाक-ए-रह-ए-तैबा माँगूँख़ुश्क सहरा हूँ मगर इ’श्रत-ए-दरिया माँगूँ
रईस वारसी
पृष्ठ के संबंधित परिणाम "रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया"
शब्दकोश से सम्बंधित परिणाम
अन्य परिणाम "रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया"
ना'त-ओ-मनक़बत
रह-गुज़ार-ए-'इश्क़ की हर-गाम थी हालत 'अजीबऔर मुसाफ़िर के मुसलसल शौक़ की हिम्मत 'अजीब
डॉ. मंसूर फ़रिदी
ना'त-ओ-मनक़बत
ग़म-ए-दीं हो न दुनिया हो न कुछ शर्म-ए-गुनाही होअगर रहबर निज़ामुद्दीन महबूब-ए-इलाही हो
राक़िम देहलवी
कलाम
निकल कर ख़ानक़ाहों से अदा कर रस्म-ए-शब्बीरीकि फ़क़्र-ए-ख़ानक़ाही है फ़क़त अंदोह-ओ-दिलगीरी
अल्लामा इक़बाल
सूफ़ी कहानी
तपते बयाबान में एक शैख़ का नमाज़ पढ़ना और अहल-ए-कारवाँ का हैरान रह जाना- दफ़्तर-ए-दोउम
एक चटयल मैदान में एक ज़ाहिद ख़ुदा की इ’बादत में मसरूफ़ था। मुख़्तलिफ़ शहरों से हाजियों
रूमी
शे'र
हुस्न-ए-असीर-ए-रस्म है 'इश्क़ है इज़्तिराब मेंमुम्किन कहाँ सुकूँ मिले सामना हो हिजाब में