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कवित्त
नेत्र वर्णन- रूप रस सारहि सुधा रसोधि साधन के
रूप रस सारहि सुधा रसोधि साधन के,कारीगर मैन कोटि विधिन सवारी है।
करीम
कवित्त
राजै एक सेज पर राधिका कुँवरि हरि
काम की कलोलन सो माठे मीठे बोलन सों,बाकै चख लोलन सों पीवें रूप रस हैं।।
अहमदुल्लाह
राग आधारित पद
टोड़ी, धमार ध्रुपद- पिय के मन-नैनन भावै, भावै तेरौ बदन पिय कौ।
पिय के मन-नैनन भावै, भावै तेरौ बदन पिय कौ।तेरे रूप-रस ऐसौ बस भयौ प्रानपति,
विलास ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ख़्वाजः-ए-जूद-ओ-सखा फ़रियाद-रस फ़रियाद-रसऐ शम्'-ए-बज़्म-ए-औलिया फ़रियाद-रस फ़रियाद-रस
शाह आयतुल्लाह क़ादरी
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छंद त्रिपदी
रस में बिरस जु अंतरधान। गोपिन कें उपजौ अभिमान।
रस में बिरस जु अंतरधान। गोपिन कें उपजौ अभिमान।बिरह-कथा में और सुख।।
भक्त कवि व्यास
पद
माघ - माघ कुल गुरु शील शोभा, बन्यो रूप सरूप रे ।
माघ कुल गुरु शील शोभा, बन्यो रूप सरूप रे ।भक्ति बिन भगवंत की नर, नीर बिन जिमि कूप रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
दोहरा
सदा ना रूप गुलाबां उते सदा ना बाग़ बहारां
सदा ना रूप गुलाबां उते सदा ना बाग़ बहारांसदा ना भज भजि फेरे करसन तोते भौर हज़ारां
मियां मोहम्मद बख़्श
साखी
सुरत रूप अति काल के, योंही धूल उड़ाहिं।
सुरत रूप अति अचरजी, वर्णन किया न जाय ।देह रूप मिथ्या तजा, सत्तरूप हो जाय।।
शिवदयाल सिंह
साखी
प्रेम का अंग - 'कबीर' हम गुरु रस पिया बाक़ी रही न छाक
'कबीर' हम गुरु रस पिया बाक़ी रही न छाकपाका कलस कुम्हार का बहुरि ते चढ़सी चाक
कबीर
गूजरी सूफ़ी काव्य
तू रूप देख जग मोह्या, चंदर तारायन भान।
तू रूप देख जग मोह्या, चंदर तारायन भान।इन्हीं रूप तू पहन होवुं, को लहो न होवे आन।।
सय्यद मोहम्मद जौनपुरी
पद
साधना का फल - सुरतिया लाल हुई चढ़ गगन निरख गुरु रूप
सुरतिया लाल हुई चढ़ गगन निरख गुरु रूपघंटा संख गरज धुन सुन कर छोड़ दिया भौकूप
शालीग्राम
ग़ज़ल
रौशनी के रूप में ख़ुश्बू में या रंगों में आमैं तुझे पहचान लूँगा कितने ही चेहरों में आ
मुज़फ़्फ़र वारसी
कृष्ण भक्ति संत काव्य
पुलिन बेलि कुसुमित सोभित अति कंचन चचरीक गुजारिनिविहरत जीव जन्तु पसु पंछी स्याम रूप रस रंग विहारिनि
जुगल प्रिया
कलाम
रूप उस के नित-नए और आईना-ख़ाने हज़ारमुस्तक़िल सिर्फ़ इक हक़ीक़त उस के अफ़्साने हज़ार
कामिल शत्तारी
पद
गुन अजब नामः - सु हौं बलि जाँव इस दुख की रहै चित च्यंत पीय मुख की
सु हौं बलि जाँव इस दुख की रहै चित च्यंत पीय मुख कीसखी सुनि रूप रस लोभा न निरखौं आंन की सोभा
वाजिद जी दादूपंथी
गूजरी सूफ़ी काव्य
तुझ एक रूप और भाँती बहोत देख आशिक़ शैदा होए
तुझ एक रूप और भाँती बहोत देख आशिक़ शैदा होए'बाजन' एकी एक सुरेखा नाहीँ सब गए जोए जोए