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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
रौनक़-ए-शान-ए-बे-निशाँ नाम-ओ-निशाँ में भी आजे़ब-ए-फ़िज़ा-ए-ला-मकाँ अब तो मकाँ में भी आ
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
शे'र
अहक़र बिहारी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रौनक़-ए-अ’हद-ए-शबाबस्त दिगर बुस्ताँ रामी-रसद मुज़्दः-ए-गुल बुलबुल-ए-ख़ुश-इलहाँ रा
हाफ़िज़
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दोहरा
सदा ना रसत बाज़ारीं विकसी सदा ना रौनक शहरां
सदा ना रसत बाज़ारीं विकसी सदा ना रौनक शहरांसदा ना मौज जवानी वाली सदा ना नदीए लहरां
मियां मोहम्मद बख़्श
फ़ारसी कलाम
ऐ सर्व-ए-नाज़ रौनक़-ए-बुस्तान-ए-मा तुईऐ नूर-ए-दीदः शम-ए’-शबिस्तान-ए-मा तुई
हुसैन बिन मंसूर हल्लाज
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
सलातीन-ए-जहाँ के दिल में अरमान-ए-ग़ुलामी है'अजब शाहाना दरबार-ए-शहंशाह-ए-गिरामी है