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सूफ़ी कहानी
हक़-तआ’ ला का इ’ज़राईल से ख़िताब कि तुझे किस पर रह्म आया - दफ़्तर-ए-शशुम
हक़-तआ’ला ने इ’ज़राईल से पूछा कि ऐ हमारी सुनाई पहुंचाने वाले सब मरने वालों में तुझे
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
हक़ीक़त मेरे ख़्वाजा की कोई बे-’इल्म क्या जानेख़ुदा ही ख़ूब जाने है ओ या बस मुस्तफ़ा जाने
ज़ैनुल आबिदीन चिश्ती
पद
हो एहसान बड़ा तेरा गर पाती पीउ की ला दे तू
हो एहसान बड़ा तेरा गर पाती पीउ की ला दे तूया पैग़ाम-ए-ज़बानी उस का ला कर हमें सुना दे तू
कवि दिलदार
ग़ज़ल
ख़ुद अपने ’इल्म की आँखों में बे-पर्दा नहीं आताबहुत देखा है अपने आप को लेकिन नहीं देखा
ज़हीन शाह ताजी
ना'त-ओ-मनक़बत
मरीज़-ए-दिल की शिफ़ा ला-इलाहा इल-लल्लाहहर इक मरज़ की दवा ला-इलाहा इल-लल्लाह
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
काफी
माए ना मुड़दा इ'श्क़ दीवाना शहु नाल परीतां ला के
माए ना मुड़दा इ'श्क़ दीवाना शहु नाल परीतां ला केइ'श्क़ शर्हा दी लग्ग गई बाज़ी खेडां मैं दायो लगा के
बुल्ले शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
किताब-ए-दिल पे रक़म ला-इलाहा-इल्लल्लाहपयाम-ए-शाह-ए-उमम ला-इलाहा-इल्लल्लाह