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सूफ़ी कहानी
हक़-तआ’ ला का इ’ज़राईल से ख़िताब कि तुझे किस पर रह्म आया - दफ़्तर-ए-शशुम
हक़-तआ’ला ने इ’ज़राईल से पूछा कि ऐ हमारी सुनाई पहुंचाने वाले सब मरने वालों में तुझे
रूमी
बैत
हस्ती को फ़ना कर के बक़ा होती है हासिल
हस्ती को फ़ना कर के बक़ा होती है हासिलजब तक न हो सनम क़तरा समंदर नहीं होता
अतहर नियाज़ी
ग़ज़ल
मकीं जिस में हो हो फिर उस मकाँ से ख़ाक हासिल हैतेरी उल्फ़त से जो ख़ाली है वो दिल भी कोई दिल है
अफ़ज़ल लखनवी
पद
हो एहसान बड़ा तेरा गर पाती पीउ की ला दे तू
हो एहसान बड़ा तेरा गर पाती पीउ की ला दे तूया पैग़ाम-ए-ज़बानी उस का ला कर हमें सुना दे तू
कवि दिलदार
ग़ज़ल
मुझ को बे-दिल क्यूँ नहीं करतीं मिरी महरूमियाँक्या फ़रेब-ए-मुद्दआ’ भी सई’-ए-ला-हासिल में है
हादी मछली शहरी
पद
बूझे को अहवाल जानाँ का इक दाना से किया सवाल
जितना कुछ देखे है तू ये सब हो जावेगा पामालतालिब इस का दीवान: है ला-हासिल उस का आ'माल