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ग़ज़ल
न समझ में आए लेकिन ये ख़ता नहीं बयाँ कीवो क़फ़स की कैसे होती जो ज़बाँ थी आशियाँ की
रा’ना अ’ज़ीमाबादी
सूफ़ी उद्धरण
सेहत के लिए ख़ुराक ज़रूरी है लेकिन ख़ुराक सेहत नहीं
सेहत के लिए ख़ुराक ज़रूरी है लेकिन ख़ुराक सेहत नहीं।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी उद्धरण
दुनिया क़दीम है लेकिन इसका नयापन कभी ख़त्म नहीं होता।
दुनिया क़दीम है लेकिन इसका नयापन कभी ख़त्म नहीं होता।
वासिफ़ अली वासिफ़
शे'र
हर क़दम के साथ मंज़िल लेकिन इस का क्या इ’लाजइ’श्क़ ही कम-बख़्त मंज़िल-आश्ना होता नहीं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
दिल तो था पहलू में लेकिन इम्तियाज़-ए-दिल न थाइज़्तिराब-ए-दिल ने बख़्शा इम्तियाज़-ए-दिल मुझे
वहशी वारसी
बैत
मुबारक तुझ को अपनी ख़ुद-रवी लेकिन ये सुनता जा
मुबारक तुझ को अपनी ख़ुद-रवी लेकिन ये सुनता जाकि दुनिया अपने रस्ते पर लगा लेती है इंसाँ को