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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
शाह-ए-शमशाद-क़दाँ ख़ुसरव-ए-शीरीं-दहनाँकि ब-मिज़्गाँ शिकनद क़ल्ब-ए-हमः-सफ़-शिकनाँ
हाफ़िज़
दकनी सूफ़ी काव्य
रोज़ोतुल इतहार
चमन पर देख कर उस दुख का पहाड़दिया है खोल बालाँ सर्व शमशाद
नवाज़िद अली ख़ान शैदा
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ग़ज़ल
खोल कर ज़ुल्फ़ों कूँ आया सर्व-क़द जब बाग़ मेंनक़्श-ए-हैरत तूर्रा-ए-शमशाद पर बाक़ी रहा
सिराज औरंगाबादी
नज़्म
सम्त-ए-काशी से चला जानिब-ए-मथुरा बादल
शाख़-ए-शमशाद पे क़ुमरी से कहो छेड़े मलारनौ-निहालान-ए-गुलिस्ताँ को सुनाए ये ग़ज़ल
मोहसिन काकोरवी
ना'त-ओ-मनक़बत
सर्व-ए-शमशाद भी हैरत से खड़े तकते हैंक़द-ए-सरवर में वो रा’नाई-ओ-ज़ेबाई है
सफ़ीउल आलम शहबाज़ी
ग़ज़ल
क़द-ए-मौज़ूँ तो शमशाद-ओ-सनोबर रखते हैं लेकिनकहाँ पावें लटक की चाल उस सर्व-ए-ख़िरामाँ की
मीर मोहम्मद बेदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
फ़ित्नः बूदी यासमीनत अज़ बर्ग-ए-गुल न-शगुफ़्तः बूदफ़ित्नः-तर गश्ती चू बर रस्त अज़ सुमन शमशाद तू
हकीम सनाई
शे'र
याद में उस क़द-ओ-रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँजा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो