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सूफ़ी कहानी
एक बादशाह का मुल्ला को शराब पिलाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक बादशाह रंग रैलियों में मस्रूफ़ था कि एक मुल्ला उस के दरवाज़े पर से गुज़रा
रूमी
ग़ज़ल
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश होजियूँ ग़ुंचा लब कूँ बंद कर ख़ामोश हो ख़ामोश हो
सिराज औरंगाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
जाम-ए-शराब-ए-’इरफ़ाँ हम को पिला दे साबिररंग-ए-दुई हमारे दिल से मिटा दे साबिर