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ना'त-ओ-मनक़बत
जाम-ए-शराब-ए-’इरफ़ाँ हम को पिला दे साबिररंग-ए-दुई हमारे दिल से मिटा दे साबिर
आशिक़ मुस्तुफ़ाबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ शराब-ए-'इश्क़ तेरा फ़ल्सफ़ा कुछ और हैख़ुम के मिम्बर पर 'अली का मर्तबा कुछ और है
आबिद नज़र
बैत
जाता है मुझ से मेरा ज़माना शबाब का
जाता है मुझ से मेरा ज़माना शबाब काऐ पीर-ए-मुग़ाँ ला मेरा शीशा शराब का
मोहम्मद समी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
इ'श्क़-बाज़ी-ओ-जवानी-ओ-शराब-ए-ला'ल-फ़ाममजलिस-ए-उंस-ओ-हरीफ़-ए-हमदम-ओ-शुर्ब-ए-मुदाम
हाफ़िज़
सूफ़ी कहानी
एक बादशाह का मुल्ला को शराब पिलाना - दफ़्तर-ए-शशुम
एक बादशाह रंग रैलियों में मस्रूफ़ था कि एक मुल्ला उस के दरवाज़े पर से गुज़रा