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ग़ज़ल
क्या शिकवा हमें ऐ दिल हम पर आवाज़ें जो दुनिया कसती हैअब ख़ुद ही हमारी हालत पर तक़दीर हमारी हँसती है
नीयाज़ मकनपुरी
शे'र
ग़ैर का शिकवा क्यूँकर रहता दिल में जब उम्मीदें थींअपना फिर भी अपना था बेगाना फिर बेगाना था
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
शिकवा-ओ-’इज़्ज़-ओ-शॉं तेरी मु'ईनुद्दीन अजमेरी'अयाँ है हर ज़माँ तेरी मु'ईनुद्दीन अजमेरी