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दोहा
गणपति-स्तुति- गणपति गण सिरताज हौ, तुम्हें नमाऊँ शीश।
गणपति गण सिरताज हौ, तुम्हें नमाऊँ शीश।ज्ञान देव पूरण हमें जानेगे सुत ईश।।
ताज जी
दोहा
स्वतः प्रकाश स्वरूप मम, वंदौ शीश निवाय।।
स्वतः प्रकाश स्वरूप मम, वंदौं शीश निवाय।।बुद्धि शुद्ध प्रकाश होय, विन्ध नाश सब जाय।।
स्वामी भगवानदास जी
राग आधारित पद
राग पूरवी- गोविंद के गुण क्यों नहिं गावो
शिव ब्रह्मादिक शीश नवावै।चरणहि दास नवो पद सेवो
सहजो बाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
जिंस-ए-दयार-ए-इश्क़ ब-बाज़ार रेख़्तेमआतिश ब-पंब: शीश: ब-सिंदां फ़रोख़्तेम
नूरुद्दीन ज़ुहूरी
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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
गुफ़्त मन बस फ़ारिग़म अज़ नाम-ओ-नंग ।शीश-ए-सालूस ब-शिकस्तम ब-संग ।।
सुमन मिश्र
पद
कबीर नाम दे पींपा रैदास, भवसागर की काटी पासा
तन मन वारूं आतमा, निशि दिन न्हाऊं शीश।।गुरु गोविन्द हृदय बसै, गुरु ही है जगदीश।।
महात्मा कल्याणदास जी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सरचश्म:-ए-वहदत गुल-ए-रा'ना न-पज़ीरदक़िंदील चिह्-ओ-शीश:-ओ-पैमान: कुदाम अस्त
साएब तबरेज़ी
पद
आदर्श आचरण -पीर पैगम्बर की बानी
साधु संत से शीश नमावे, हात जोरकर निर्बानी।।कहत कमाल सुनो भाई साधू, येही हमारी बानी।
कमाल
पद
राम रस मीठा रे, अमली बिन पीया न जाय
तन मन आतम सूं पीयै, सुरति निरति सब शीश।।राम रसाइण भरि पीया, पूरण है जगदीश।।
महात्मा कल्याणदास जी
पद
सखी हो दास कबीर गुरु राख्या
तन मन देकरि शीश भी दीया, गुरु गोबिंद मिलि जीया।।महिमा कहा कहूँ जन केरी, अमी महारस पीया।।
महात्मा कल्याणदास जी
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
पंडित पद्मविजय गुरुराय, पटोदया गिरि रवि कहवाय। जय बधु शांति विजयनो शीश, जो पै दोलत मनह जगीस।।97।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
चौपाई
भक्तधीन विरद प्रभु केरे । गावत वाणी वेद घनेरे ।
प्रहण नहाहु सकल तहँ जाई । सुनि आयसु सब शीश चढ़ाई ।।मुदित सकल आँनद रस पागे । गवन साज साजन कहँ लागे ।।

