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चौपाई
सद्गुरुमहिमा - आप सबन में सब तें न्यारे
आप सबन में सब तें न्यारे चार बुद्धि के मनुष सँवारेप्रथम बुद्धि जल लीक खिंचाई खिंचती जाय सोइ मिटि जाई
सहजो बाई
सूफ़ी लेख
कबीर जी का समय डाक्टर रामप्रसाद त्रिपाठी, एम. ए., डी. एस्-सी.
कहँ तब गुरु शब्द कित पायी। साहिब कौन सबन के पारा,
हिंदुस्तानी पत्रिका
खंडकाव्य
।। रासपञ्चाध्यायी ।।
परमातम परब्रह्म सबन के अन्तरजामी।नारायन भगवान धरम करि सब के स्वामी।।
नंद दास
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महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
याते उनको रस भयउ सबन माहि रसराज।।62।।अरु विबिचारी सकल कवि याही रसमय होत।
रसलीन
महाकाव्य
।। अंगदर्पण ।।
सुकिनारी सारी चितै सबन बिचारी बात।गात रूप पर बाल के जातरूप बलि जात।।94।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
तुम हौ निलज, लाज नहिं तुमको फिर सिर पुहुप धरे। ससा स्यार और बन के पखेरू धिक धिक सबन करे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
चौपाई
इक गोपाल संग मम जाई । बस्यो नृपति ह्वै सोइ पुर छाई ।।
कोउ नाचत है दै कर तारी । बहुविधि करत कुलाहल भारी ।।एक एकन ते देत बधाई । मानहुँ सबन गई निधि पाई ।।
रत्नकुंवरि बाई
चौपाई
अखरावती - काया तें आगे जो होई ता में राखो सुरति समोई
अच्छर मूल सबन को होईबिन अच्छर सब जायबिगोई
कबीर
अष्टपदी
गुरू को तजि हरि सेब कभी नहिं कीजिये
जो गुरू झिड़कैं लाख तौ मुख नहिं मोड़ियोगुरू से नेह लगाय सबन सों तोड़यो
चरनदास जी
चौपाई
अखरावती - सुनहु संदेसा सुरत सनेही कहूं संदेसा अचल बिदेही
सतजुग त्रेता द्वापर बीता काहु न हुई सब्द परतीताजप तप जोरा सबन ठहराया काहू न खोज सब्द का पाया