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कवित्त
एरे! ऋतुराज धन्य रावरो समाज
एरे! ऋतुराज धन्य रावरो समाजसाज सुखमा अनंत दिग अंत लो बिहारी है।
सय्यद छेदाशाह
कवित्त
सम्यक सजीलो रम्य रहस रसीलो रच्यो
सम्यक सजीलो रम्य रहस रसीलो रच्योरंग रंग साज की अतोल झलकन पै।
सय्यद छेदाशाह
कुंडलिया
कहते केवल राम ही, लडै भेष बहु भाइ।।
झूठ मोरछै आइ, ढ़ाल तरवार संजोई।।छुरी कटारी साज सूज, चरचा बहु होई।।
स्वामी आत्माराम जी
पद
दौलत निसान बान धरे खुदी अभिमान,
घेरा डेरा गज बाज झूठो है सकल साज,बादि हरिनाम कोऊ काज नाहिँ अंत कै ।
केशवदास
कवित्त
फूल बिन बाग जैसे, वाणी बिन राग जैसे
धन बिन साज जैसे शोचे बिन काज जैसे,राजा बिन राज जैसे नदी बिन तरंग है।।
हफ़ीजुल्लाह ख़ान
कविता
प्रार्थना- सबसों मीर गरीब है, आप गरीब निबाज।
सबसों मीर गरीब है, आप गरीब निबाज।कोर कृपा कर फेरबी, वे दिन व सुख साज।।
सय्यद अमीर अली मीर
सूफ़ी लेख
सूफ़िया-ए-किराम और ख़िदमात-ए-उर्दू - सय्यद मुहीउद्दीन नदवी
शोरफ़ा बल-बल जाए उस गर्द के साजबड़े सीसतानी जन कहे सगर राज के राज
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
चन्दायन - डॉ. विश्वनाथ प्रसाद
लोग कतेत कछु कहे न तोरा।।दोहा- काह विराग तुम निसरे साज कह तुम तहे बात
भारतीय साहित्य पत्रिका
कविता
संध्या- देखते थे सब अभी तो फिर कहां वह छिप गई।
'मीर' चपके हो रहो अब रात का है अन्धराजफिर उदय होगा प्रभाकर फिर सजेगा साज बाज।।
सय्यद अमीर अली मीर
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
जिते साज हैं कबित के मम्भट कहे बखानि। ते सब भाषा मैं कहे रस-रहस्य मैं जानि।।210।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
चौपाई
भक्तधीन विरद प्रभु केरे । गावत वाणी वेद घनेरे ।
प्रहण नहाहु सकल तहँ जाई । सुनि आयसु सब शीश चढ़ाई ।।मुदित सकल आँनद रस पागे । गवन साज साजन कहँ लागे ।।
रत्नकुंवरि बाई
छंद
सोधे समीरन को सरदार मलिन्दन को मनसा फलदायक।
कन्त अनन्त अनन्त कलीन को दीनन के मन को सुखदायक।सांचे मनोभव राज को साज सु आवत आज इतै ऋतुनायक।।