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ग़ज़ल
कभी पूछा न ऐ साजन जो क्या तुझ पर गुज़रती हैतेरी फ़ुर्क़त से ऐ प्यारे न जीती है न मरती है
मीराँ शाह जालंधरी
दोहा
बुल्लया औंदा साजन वेख के, जांदा मूल ना वेख ।
बुल्लया औंदा साजन वेख के, जांदा मूल ना वेख ।मारे दरद फ़राक दे, बण बैठे बाहमण शेख ।।
बुल्ले शाह
साखी
प्रेम का अंग - सौ जोजन साजन बसै मानो ह्रदय मँझार
सौ जोजन साजन बसै मानो ह्रदय मँझारकपट सनेही आँगने जानु समुंदर पार
कबीर
ग़ज़ल
ऐ घनघोर घटाओ बरसो सौतन ही की दुनिया मेंदूर देस में मेरा साजन जिस के कारन रहता है