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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
शे'र
सुकून-ए-मुस्तक़िल दिल बे-तमन्ना शैख़ की सोहबतये जन्नत है तो इस जन्नत से दोज़ख़ क्या बुरा होगा
हरी चंद अख़्तर
ना'त-ओ-मनक़बत
दुनिया में तिरा फ़ैज़ सुकून-ए-दिल-ओ-जाँ हैकाम आएगी महशर में तिरी पुश्त-पनाही
सय्यद ज़ियाउल हक़
शे'र
सुकून-ए-क़ल्ब की उम्मीद अब क्या हो कि रहती हैतमन्ना की दो-चार इक हर घड़ी बर्क़-ए-बला मुझ से
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
सुकून-ए-क़ल्ब किसी को नहीं मयस्सर आजशिकस्त-ए-ख़्वाब है हर शख़्स का मुक़द्दर आज
अहमद अली बर्क़ी आज़मी
कलाम
वही सब से बड़ी ने'मत है जो मिल जाए बे-माँगेसुकून-ए-दिल से बेहतर इज़्तिराब-ए-दिल समझता हूँ