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साखी
सेवक और दास का अंग - गुरू समरथ सिर पर खड़े कहा कमी तोहि दास
गुरू समरथ सिर पर खड़े कहा कमी तोहि दासऋध्दि सिध्दि सेवा करैं मुक्ति न छाड़ै पास
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - द्वार धनी के पड़ि रहै धका धनी का खाय
द्वार धनी के पड़ि रहै धका धनी का खायकबहुँक धनी निवाजई जो दर छाड़ि न जाय
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - 'कबीर' ख़ालिक़ जागिया और न जागै कोय
'कबीर' ख़ालिक़ जागिया और न जागै कोयकै जागै बिषया भरा कै दास बंदगी जोय
कबीर
पद
प्रेम भक्ति गुर धार हिये में आया सेवक प्यारा हो
प्रेम भक्ति गुर धार हिये में आया सेवक प्यारा होप्रेम भक्ति गुर धार हिये में आया सेवक प्यारा हो
शालीग्राम
साखी
सेवक और दास का अंग - सेवक कुत्ता गुरू का मोतिया वा का नाँव
सेवक कुत्ता गुरू का मोतिया वा का नाँवडोरी लागी प्रेम की जित खैंचै तित जाव
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - सेवक सेवा में रहै अनत कहूँ नहिं जाय
सेवक सेवा में रहै अनत कहूँ नहिं जायदुख सुख सिर ऊपर सहै कह 'कबीर' समुझाय
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - ये मन ता को दीजिये जो साचा सेवक होय
ये मन ता को दीजिये जो साचा सेवक होयसिर ऊपर आरा सहै तहू न दूजा जोय
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - सेवक स्वामी एक मति जो मति में मति मिलि जाय
सेवक स्वामी एक मति जो मति में मति मिलि जायचतुराई रीझैं नहीं रीझैं मन के भाय
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग - सब कछु गुरू के पास है पइये अपने भाग
सब कछु गुरू के पास है पइये अपने भागसेवक मन से प्यार है निसु दिन चरनन लाग
कबीर
राग आधारित पद
रागिनी टोड़ी, ताम धीमा- देखौरी एक जोगी यह भेष कियैं
'तानतरंग' सेवक सेवौ शंकर,चंद्रमा ललाट आढ़ दियै।
तान तरंग
सूफ़ी लेख
खुमाणरासो का रचनाकाल और रचियता- श्री अगरचंद नाहटा
दलपति सुं कीजे दया, सेवक जाँणी सकत्ति।।6।। कवित्त
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
माथुर बिप्र ककोर-कुल लह्यौ कृष्न-कवि नावँ। सेवक हौँ सब कबिनि कौ वसत मधुपुरी गावँ।।25।।