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कलाम
रातीं ख़्वाब न तिन्हाँ हरगिज़ जेड़े वाले हू
बाग़ाँ वाले बूटे वाँगूँ तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
शे'र
नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगा
जिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा
तुराब अली दकनी
ग़ज़ल
नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगा
जिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा
तुराब अली दकनी
शे'र
नहीं यारो ख़ुदा हरगिज़ तुम्हारे सुँ जुदा हैगा
जिधर देखे उधर ममलू सदा नूर-ए-ख़ुदा हैगा
तुराब अली दकनी
पद
हाकिम हो कर ज़ुल्म न करना हरगिज़ ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पर
हाकिम हो कर ज़ुल्म न करना हरगिज़ ख़ल्क़-ए-ख़ुदा पर
वरनहौं इस का बदला होगा तुमसे रोज़-ए-जज़ा पर
कवि दिलदार
कलाम
की होया बुत दूर गया दिल हरगिज़ दूर न थीवे हू
सै कोहाँ ते वसदा मुर्शिद विच हुज़ूर दिसीवे हू
सुल्तान बाहू
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
क़िनायत अजब गंज हैं पायदार
फ़ना जिसको हरगिज़ नही दोसदार