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चौपाई
अग्यांनी ग्यांन बिन खेल्योक, चल्यो पग हाथ तैं मेल्योक
मनसा ममता मांहि लागीक, पांचो इन्द्रियाँ जाणीक।।हलाहल कांम उर जाग्यौक, मानूं भूयंग पग लाग्यौक।।
महात्मा षेमदास जी
महाकाव्य
।। अंगदर्पण ।।
अभी हलाहल मद भरे सेत स्याम रतनार।जियत मरत झुकि झुकि परत जिहि चितवत इकबार।।35।।