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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
सय्यदा ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अजब हालत ज़मीन-ए-कर्बला तेरी हुई होगीबहार-ए-गुलशन-ए-पैग़म्बरी जब लुट रही होगी
सय्यद हसन अहमद
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ना'त-ओ-मनक़बत
फ़िराक़-ओ-हिज्र के हालात-ए-ग़म का माजरा सुन लेगुज़रती है जो दिल पर ऐ शह-ए-हर-दोसरा सुन ले
शकील बदायूँनी
मुख़म्मस
एक ज़माना था कि हिज्र-ए-यार में सीना-फ़िगारजुस्तुजू में उस की फिरता था ब-हर शहर-ओ-दयार
आग़ा मुहम्मद दाऊद
ना'त-ओ-मनक़बत
रह-गुज़ार-ए-'इश्क़ की हर-गाम थी हालत 'अजीबऔर मुसाफ़िर के मुसलसल शौक़ की हिम्मत 'अजीब
डॉ. मंसूर फ़रिदी
क़िता'
देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाजकहने लगा कि ला-इलाज बंदा हूँ मैं ख़ुदा नहीं
ख़्वाजा मीर दर्द
ग़ज़ल
तिरी उल्फ़त में पेश आई मुसीबत अपनी हालत कोजिगर को दिल को जाँ को रूह को नज़रों को क़िस्मत को