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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी कहावत
ख़ाक-ए-वतन अज़ मुल्क-ए-सुलैमाँ ख़ुश्तर
वतन की मिट्टी सुलैमान (नबी) की सलतनत से ज़्यादा बेहतर है
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
अ’र्शी औरंगाबादी
ग़ज़ल
अहक़र बिहारी
सूफ़ी उद्धरण
जिस शख़्स का वतन में कोई महबूब न हो वो वतन से मोहब्बत नहीं कर सकता।
जिस शख़्स का वतन में कोई महबूब न हो वो वतन से मोहब्बत नहीं कर सकता।
वासिफ़ अली वासिफ़
गूजरी सूफ़ी काव्य
दिल के घर मांही चराग़-ए-हुब्ब जला
दिल के घर मांही चराग़-ए-हुब्ब जलामेरे पिउ कूँ जान अपनी सहला
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
गूजरी सूफ़ी काव्य
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ कर
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ करहुब्बुलवतन ईमान है पिउ की तरफ़ चले ऐ सखी
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मनम अज़ बादः-ए-हुब्ब-ए-अ’ली सरशार मी-रक़समजहाँ हैराँ कि मन बा-जुब्बः-ओ-दस्तार मी-रक़सम