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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
जन्नत-उल-फ़िरदौस से बेहतर है जा-ए-ग़ौस-ए-पाकख़ुल्द में रिज़वाँ भी करता है सना-ए-ग़ौस-ए-पाक
अज्ञात
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
ना'त-ओ-मनक़बत
बहार-ए-बाग़-ए-जन्नत है बहार-ए-रौज़ा-ए-साबिरज्वार-ए-अ’र्श-ए-आ’ला है ज्वार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
बेदम शाह वारसी
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ना'त-ओ-मनक़बत
मुल्क-ए-जन्नत है अगर शान-ए-वक़ार-ए-फ़ातिमाघर में चक्की पीसना भी है शिआ'र-ए-फ़ातिमा
अस'अद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए
अ'बिद बरेलवी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
बाग़-ए-जन्नत से भी बढ़ कर है मदीने की ज़मींकिस की ख़ुश्बू से मो'अत्तर है मदीने की ज़मीं
ताहा अज़ीज़
ग़ज़ल
चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस काकि चौथे चर्ख़ पर ख़ुर्शीद है अक्स-ए-जमाल उस का
सिराज औरंगाबादी
फ़ारसी कलाम
दर हुस्न-ए-रुख़-ए-ख़ूबाँ पैदा हम: ऊ दीदमदर चश्म-ए-निको-रूयाँ ज़ेबा हम: ऊ दीदम