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ग़ज़ल
दिल-रुबाई की हक़ीक़त मेरे दर्द-ए-दिल में हैहुस्न अगर पूछो तो मेरी फ़ितरत-ए-कामिल में है
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
गए होश-ओ-ख़िरद इश्क़-ए-लब-ए-जाँ-बख़श-ए-जानाँ मेंक़यामत है हमारी नाव डूबी आब-ए-हैवाँ में
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
ग़ज़ल
सिलसिला टूटे न साक़ी होश उड़ जाने के बा'दमुझ को मिलता ही रहे पैमाना पैमाने के बा'द
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
न दुनिया की ख़बर है कुछ न दीं का होश है सर मेंभुलाया दो-जहाँ को तू ने साक़ी एक साग़र में
रिंद लखनवी
शे'र
बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैंहर वक़्त उन्ही के जल्वों से ईमान का सौदा करते हैं
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
कि ख़िरद की फ़ित्नागरी वही लुटे होश छा गई बे-ख़ुदीवो निगाह-ए-मस्त जहाँ उठी मिरा जाम-ए-ज़िंदगी भर गया
फ़ना बुलंदशहरी
शे'र
ख़िरद है मजबूर अक़्ल हैराँ पता कहीं होश का नहीं हैअभी से आलम है बे-ख़ुदी का अभी तो पर्दा उठा नहीं है