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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
चे-गूना बर न-परद जाँ चू अज़ जनाब-ए-जलालख़िताब-ए-लुत्फ़-ए-चू शक्कर ब-जाँ रसद कि तआ’ल
रूमी
कलाम
जमाल-ए-इब्तिदा बन कर जलाल-ए-इंतिहा होकरबशर दुनिया में आया मज़हर-ए-शान-ए-ख़ुदा होकर
तुरफ़ा क़ुरैशी
फ़ारसी कलाम
अनीस-ए-महफ़िल-ए-उंंसी जलीस-ए-मज्लिस-ए-क़ुदसीसुरूर-ए-जान-ए-ख़ासानी नशात-ए-रूह-ए-पाकानी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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शे'र
उड़ सकें बरसात में किस तरह जुगनू बे-शुमारजोश-ए-गिर्या में शरर-अफ़शाँ जो दिल अक्सर ना हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
कुंडलिया
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।कहां बीरबल गंग है, कहां अकब्बर खान।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
माया-माया करत है, खरच्या खाया नाहिं।
माया-माया करत है, खरच्या खाया नाहिं।सो नर ऐसे जाहिंगे, ज्यों बादर की छाहिं।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
बंदा बहुत न फूलिए, खुदा खियेगा नहिं।
बंदा बहुत न फूलिए, खुदा खियेगा नहिं।जोर जुलम कीजै नहीं, मिरतलोक के माहिं।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।कौन आज को काल को, पाव पलक के मांहि।।
दीन दरवेश
कुंडलिया
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।एक मूंग दो झाड़ हैं, कुण ज्यादा कुण कम्म।।
दीन दरवेश
कविता
पिय के संग एरी नार चौसर क्यों नहि खेले
पिय के संग एरी नार चौसर क्यों नहि खेलेइश चौसर का निपट सार जोबना यह दिन है तिन चार
अज़ीज़ दीन
ग़ज़ल
ताइर-ए-दिल ख़ाल तो देखा ख़म-ए-गेसू भी देखदाम भी तुझ को नज़र आ जाएगा दाने के बा'द
पीर नसीरुद्दीन नसीर
दोहा
मै चाहूँ कि उड़ चलूँ पर बिन उड़ा न जाय
मै चाहूँ कि उड़ चलूँ पर बिन उड़ा न जायकाह कहौं करतार को जो पर ना दिया लगाय
आसी गाज़ीपुरी
कलाम
आशोब-ए-जुदाई क्या कहिए अनहोनी बातें होती हैंआँखों में अंधेरा छाता है जब उजयाली रातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
गूजरी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा हाजी मगरोली शाह
हाजी ने तब कहा यूँ देखें देवल सो तेरा,तू साथ चल हमारे किस शान का है डेरा।