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कविता
अन्योक्ति पंचक- बगला बैठा ध्यान में प्रातः जलके तीर
बगला बैठा ध्यान में प्रातः जलके तीरमानो तपसी तप करे मलकर भस्म शरीर।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- पूर्व से पहले प्रकाशित थी हुई पश्चिम दिशा
पूर्व से पहले प्रकाशित थी हुई पश्चिम दिशा।हाय अब उस ओर से दौड़ी चली आती निशा।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- भानु तो चलता हुआ लेकिन प्रभाली रह गई।
भानु तो चलता हुआ लेकिन प्रभाली रह गई।रम गया जोगी कही है ख़ाक ख़ाली रह गई।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- रात ने पाया विजय जम केतु यह फहरा रहा!
रात ने पाया विजय जम केतु यह फहरा रहा!या उसी के राग का है सिन्धु यह लहरा रहा।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
अन्योक्ति पंचक- जाने कीन्हो शमन है, मत्त मत्तंग न मान।
जाने कीन्हो शमन है, मत्त मत्तंग न मान।हाय दैव वश सिंह सो, परयो पीजरे आन।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- है प्रतीची ने अरुण पट प्रेम से धारण किया
है प्रतीची ने अरुण पट प्रेम से धारण किया।हो गया अन्दाज कुदरत ने बदल परदा दिया।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- जब क्षितिज के गर्भ में छिप भास्कर प्रतिभा गई।
जब क्षितिज के गर्भ में छिप भास्कर प्रतिभा गई।तब प्रतीची व्योम में आकर अरुणिमा छा गई।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
संध्या- उल्लुओं चिमगादड़ों की देखलो अब बन पड़ी।
उल्लुओं चिमगादड़ों की देखलो अब बन पड़ी।निशि समागम से खुशी है जार चोरो को बड़ी।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
आज और कल- दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।
दया सिन्धु की दया प्राप्त कर हुए अगर तु धन शाली।बनो बिनत पाओगे शोभा जैसी अली फल वाली।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
अन्योक्ति पंचक- तोता तू पकड़ा गया जब था निपट नदान।
तोता तू पकड़ा गया जब था निपट नदान।बड़ा हुआ कुछ पढ़ लिया, तौ भी रहा अजान।।