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शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
शे'र
हम ऐसे ग़र्क़-ए-दरिया-ए-गुन: जन्नत में जा निकलेतवान-ए-लत्मः-ए-मौज-ए-शफ़ाअत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
राह में जन्नत 'हफ़ीज़' आवाज़ देती ही रहीहम ने मुड़ कर भी न देखा कर्बला जाते हुए
हफ़ीज़ फ़र्रूख़ाबादी
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ना'त-ओ-मनक़बत
दर जन्नत है दरवाज़ा मु'ईनुद्दीन चिश्ती काजहाँ फिर क्यूँ न हो शैदा मु'ईनुद्दीन चिश्ती का
अज्ञात
शे'र
'नसीर'-ए-खस्तः-जाँ जन्नत से इस कूचे को कब बदलेब अज़ ज़िल्ल-ए-हुमा है यार की दीवार का साया
शाह नसीर
शे'र
क्यूँ न दोज़ख़ भी हो जन्नत मुझे जब ख़ुद वो कहेइस गुनहगार को ले जाओ ये मग़्फ़ूर नहीं
इरफ़ान इस्लामपुरी
शे'र
मिला क्या हज़रत-ए-आदम को फल जन्नत से आने कान क्यूँ उस ग़म से सीन: चाक हो गंदुम के दाने का
शाह नसीर
बैत
याद दिलाओ न मुझ को जन्नत की
याद दिलाओ न मुझ को जन्नत कीइक जहाँ है जहाँ मैं रहता था
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए