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दोहा
रहिमन राम न उर धरै रहत बिषय लपटाय
रहिमन राम न उर धरै रहत बिषय लपटायपसु खर खात सवाद सों गुर गुलियाए खाय
रहीम
दोहा
परि कटारी विरह की टूट रही उर साल
परि कटारी विरह की टूट रही उर सालमूएँ पीछैं जो मिलौ जीयत मिलौ 'जमाल'
जमाल
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दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा रूह-अफ़्ज़ा और रिज़वान-शाह
जिते हैं हिकायत के राबियाँयो क़िस्सा उनों यूँ किए है बयाँ
फ़ायज़
दोहा
लोक जू काजर की लगी अंग लगे उर लाल
लोक जू काजर की लगी अंग लगे उर लालआज उनीदे आइए जागे कहाँ 'जमाल'