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सूफ़ी उद्धरण
फ़क़ीर का मर्तबा ख़ुदा के नज़दीक बहुत बड़ा और अफ़ज़ल है।
फ़क़ीर का मर्तबा ख़ुदा के नज़दीक बहुत बड़ा और अफ़ज़ल है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ी वो है, जिसका दिल हर तरह की बुराई और गंदगी से साफ़ होता है।
सूफ़ी वो है, जिसका दिल हर तरह की बुराई और गंदगी से साफ़ होता है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
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सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ी शोक मनाता है और जब वह ख़ुदा के नज़दीक हो जाता है, तो शोक मनाना बंद कर देता है।
सूफ़ी शोक मनाता है और जब वह ख़ुदा के नज़दीक हो जाता है, तो शोक मनाना बंद कर देता है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ी वो है, जो सुबह को उठे तो रात को याद न करे।
सूफ़ी वो है, जो सुबह को उठे तो रात को याद न करे।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
इंसान में अस्ल चीज़ दिल है और जब उस दिल की इस्लाह हो जाती है, तो इंसान की हर चीज़ की इस्लाह होने लगती है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
बदन को सलामत रखने के लिए खाना है और रूह की सलामती गुनाह छोड़ने में है।
बदन को सलामत रखने के लिए खाना है और रूह की सलामती गुनाह छोड़ने में है।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
एक फ़क़ीर का फ़क़्र और ख़ुदा पर भरोसा इतना मज़बूत होता है कि दुनिया की कोई भी चीज़ उसे हिला नहीं सकती और उसकी एक साँस में दोनों जहां नहीं समा सकते।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
जब बंदे का यक़ीन पुख़्ता हो जाता है, तो उस की हर एक हरकत में ख़ुदा का जल्वा दिखता है। उस की आदतें, उस के नफ़्स को जीत लेती हैं।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
इल्म का अर्थ पहचान है। इल्म के ज़रिए ही एक साधक ख़ुदा की बारगाह में ऊँचा मर्तबा हासिल करता है, लेकिन इस के लिए यह ज़रूरी है कि बंदा इल्म पर अमल भी करे।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
शे'र
मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
शे'र
मुझे रास आएं ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ’तेंउन्हें ए’तबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ए’तबार-ए-सितम नहीं
शकील बदायूँनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
भौंरा लेवे फूल-रस रसिया लेवे बास
भौंरा लेवे फूल-रस रसिया लेवे बासमाली सींचे आस कर भौंरा खड़ा उदास