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शे'र
ये कह कर ख़ाना-ए-तुर्बत से हम मय-कश निकल भागेवो घर क्या ख़ाक पत्थर है जहाँ शीशे नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
पद
ककहरा - भभ्भा भगी सुरति घट माहिँ जाय जो देखा भाई
भभ्भा भगी सुरति घट माहिँ जाय जो देखा भाईसुखमनि सेज सँवारि सुन्नी में सुरति लगाई
तुलसी साहिब हाथरस वाले
शे'र
कुछ भीगी तालैं होली की कुझ नाज़ अदा के ढंग भरेदिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे
नज़ीर अकबराबादी
समस्त