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पद
क्या नफ़रीं करता है ज़ाहिद इन बेचारे रिंदों पर
क्या नफ़रीं करता है ज़ाहिद इन बेचारे रिंदों परये तो बंदे ख़ालिक़ के हैं तान न कर दिल ज़िंदों पर
कवि दिलदार
ग़ज़ल
जुनूँ से कुछ नहीं चारा करे क्या क़ैस बेचाराबरहना-पा बरहना-सर फिरे है बन में आवारा
शाह तुराब अली क़लंदर
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कुंडलिया
अवधि बिचारै दिन गिनैं बिन बेली बेहाल
अवधि बिचारै दिन गिनैं बिन बेली बेहालतिसहि नींद कहि क्यूँ परै कर तैं खोया लाल
वाजिद जी दादूपंथी
राग आधारित पद
मैं तो मन मां सोंंच बेचारा साहेब का नाम है प्यारा
मैं तो मन मां सोंंच बेचारा साहेब का नाम है प्याराजब पीत क्या छुपे तब प्यारे पराँ से बल जैहे
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
दोहा
गुरु-गोबिंद को एक बिचारौ दुबिधा दुक्ख निकाल
गुरु-गोबिंद को एक बिचारौ दुबिधा दुक्ख निकालगुरु को 'औघट' और न-जानो गुरु-धन दीन-दयाल
औघट शाह वारसी
कुंडलिया
यहु बरियां बहुरयौ नहीं हा हा हूँ बलि कंत वे
'बाजीद' कहै बिचारि स्वामी यहु बरियाँ बहुरयौ नहीं
वाजिद जी दादूपंथी
दोहा
इंद्रियों का बर्णन - दुर्जन के फूटे बिना तेरी होय न जीत
दुर्जन के फूटे बिना तेरी होय न जीत'चरनहिदास' बिचारि करि ऐसी कहिये रीत
चरनदास जी
शबद
उपदेश प्रीति उसी से कीजिए जो ओर निभावै
दास 'कबीर' बिचारि के कहि कहि जतलावैआपा मिटि साहेब मिलै तब वो घर पावै
कबीर
अरिल्ल
सुमिरन कौ अंग - तौ जोगी जंगम सेख निस्तरे नांव ही
जब लग साँस सरीर बिलंब न कीजियेपरि हाँ जन 'बाजीद' बिचारि रैंन दिन लीजिये
वाजिद जी दादूपंथी
शबद
तिहरी तिकुटी बिषमीं सन्धि। मूल द्वारे पवना बन्धि
तिहरी तिकुटी बिषमीं सन्धि। मूल द्वारे पवना बन्धितहाँ निरंजन रहा समाय बिचारि बिमर कर बूझह जाय
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
कुंडलिया
सदा न संग सहेलियाँ सदा न राजा देस वै
पिव परौं तेरे पाइ तातैं जे आई ते खेलिया'बाजीद' कहै बिचारि स्वांमी सदा न संगि सहेलियाँ
वाजिद जी दादूपंथी
कुंडलिया
मृग तृष्णा संसार है पुर पाटन क्या हाट वै
इक करौं कैसी रहू बैसि तजि आभूषण हार वे'बाजीद' कहै बिचारि स्वामी मृग तृष्णा संसार वे