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साखी
प्रेम का अंग - पीया जाहै प्रेम रस राखा चाहै मान
पीया जाहै प्रेम रस राखा चाहै मानएक म्यान में दो खड़ग देखा सुना न कान
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम प्रेम सब कोइ कहै प्रेम न चीन्है कोय
प्रेम प्रेम सब कोइ कहै प्रेम न चीन्है कोयआठ पहर भीना रहै प्रेम कहावै सोय
कबीर
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साखी
प्रेम का अंग - ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाध
ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाधसीस काटि पग तर धरै तब निकट प्रेम का स्वाद
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - 'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगाय
'कबीर' प्याला प्रेम का अंतर लिया लगायरोम रोम में रमि रहा और अमल बया खाय
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम भक्ति का गेह है ऊँचा बहुत इकन्त
प्रेम भक्ति का गेह है ऊँचा बहुत इकन्तसीस काटी पग तर धरै तब पहुँचै घर संत
कबीर
दोहा
नारायण का अंत न पाया माला जप का कीन्ह
नारायण का अंत न पाया माला जप का कीनराम मिलन की बुध सुन 'औघट' पहले गुर को चीन्ह
औघट शाह वारसी
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
दोहा
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकाय
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो छिटकायटूटे से फिर ना मिले मिले गाँठ पड़ जाय
रहीम
दोहा
'औघट' पूजा-पाट तजो लगा प्रेम का रोग
'औघट' पूजा-पाट तजो लगा प्रेम का रोगसत्त-गुरु का ध्यान रहे यही है अपना जोग
औघट शाह वारसी
दोहा
प्रेम का अंग - 'दया' प्रेम उनमत्त जे तन की तनि सुधि नाहिं
'दया' प्रेम उनमत्त जे तन की तनि सुधि नाहिंझुके रहैं हरि रस छके थके नेम ब्रत नाहिं
दया बाई
पद
भ्रम का ताला लगा महल रे प्रेम की कुंजी लगाव
भ्रम का ताला लगा महल रे प्रेम की कुंजी लगावकपट-किवड़िया खोल के रे यहि बिधि पिय को जगाव