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ना'त-ओ-मनक़बत
शब्बीर का मक़्तल में इस्लाम को फैलानातीरों के मुसल्ला पर है सज्दा-ए-शुक्राना
बेदार शाह वारसी
कुंडलिया
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।
बंदा बाजी झूठ है, मत सांची करमान।कहां बीरबल गंग है, कहां अकब्बर खान।।
दीन दरवेश
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कुंडलिया
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।
गड़े नगारे कूचकै, छिनभर छाना नाहिं।कौन आज को काल को, पाव पलक के मांहि।।
दीन दरवेश
कविता
पिय के संग एरी नार चौसर क्यों नहि खेले
पिय के संग एरी नार चौसर क्यों नहि खेलेइश चौसर का निपट सार जोबना यह दिन है तिन चार
अज़ीज़ दीन
कुंडलिया
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।
हिंदू कहें सो हम बड़े, मुसलमान कहें हम्म ।एक मूंग दो झाड़ हैं, कुण ज्यादा कुण कम्म।।
दीन दरवेश
सूफ़ी कहावत
हमनशीन-ए- तू अज़ तू बा बायद। ता तोरा अक़्ल ओ दीन बे अफ़ज़ायद
आपका साथी आपसे बढ़कर होना चाहिए, ताकि आपकी बुद्धि और धर्म में वृद्धि हो
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
अहल-ए-सफ़ा के दीन का क़िब्ला हुसैन हैंअहल-ए-नज़र के वास्ते का'बा हुसैन हैं
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
तुम मेरा दीं मेरी दुनिया या हज़रत बाबा ताजुद्दीनतुम मेरे हो सब कुछ है मिरा या हज़रत बाबा ताजुद्दीन
ज़हीन शाह ताजी
गूजरी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा हाजी मगरोली शाह
हाजी ने तब कहा यूँ देखें देवल सो तेरा,तू साथ चल हमारे किस शान का है डेरा।