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दिल
दिल
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शे'र
हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आशिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल सेअजल तो है ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
हैं शौक़-ए-ज़ब्ह में आ'शिक़ तड़पते मुर्ग़-ए-बिस्मिल सेअजल तू ही ज़रा कह आना ये पैग़ाम क़ातिल से
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
न समझा 'उम्र-भर कोई कि मैं भी तेरा बिस्मिल थालबों पर थी हँसी ज़ख़्मों से गो छलनी मिरा दिल था