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कलाम
कभी रौशनी कभी तीरगी यही ज़िंदगी का निज़ाम हैवो नज़र मिलाईं तो सुब्ह है वो नज़र चुराई तो शाम है
इक़बाल सफ़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
डॉ. शाह ख़ुसरौ हुसैनी
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
कलाम
मुझे दर्द तू ने बख़्शा ये करम नहीं तो क्या हैमुझे अपना तू ने समझा ये करम नहीं तो क्या है