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फ़ारसी कलाम
ऐ दोस्त ब-बीं दर हमः सू रू-ए-ख़ुदा-रा बा-ऐ'न निगाहेमी दाँ ब-यक़ीं ईं हमगी मा-ओ-शुमा रा मिरआत-ए-इलाहे
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी कलाम
मर्हबा ऐ पैक-ए-मुश्ताक़ाँ ब-देह पैग़ाम-ए-दोस्तता कुनम जाँ अज़ सर-ए-रग़बत फ़िदा-ए-नाम-ए-दोस्त
हाफ़िज़
ग़ज़ल
हुए दोस्त दुश्मन मेरे ऐ जाँ तेरी फ़ुर्क़त मेंमिस्ल सच है नहीं अपना कोई होता मुसीबत में
कौसर ख़ैराबादी
सूफ़ी कहावत
हर कि गर्दन बदावा अफ़राज़द। दुश्मन अज़ हर तरफ़ बदू ताज़द।
वह जो अपने सर को दावे से ऊंचा उठाता है, उस पर सभी ओर से दुश्मन हमला कर सकते हैं।