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दोहा
अपने घर का दुख भला पर घर का सुख छार
अपने घर का दुख भला पर घर का सुख छारऐसे जानै कुल बधऊ सो सतवंती नार
चरनदास जी
दोहा
यों 'रहीम' सुख दुख सहत बडे लोग सह साँति
यों 'रहीम' सुख दुख सहत बड़े लोग सह साँतिउवत चंद जेहि भाँति सो अथवत ताही भाँति
रहीम
दोहा
विनय मलिका - दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवान
दुख तजि सुख की चाह नहिं नहिं बैकुंठ बेवानचरन कमल चित चहत हौं मोहिं तुम्हारी आन
दया बाई
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पद
गुन अजब नामः - सुख दुख सीस परि सहिये अजब सौं अजब ह्वै रहिये
सुख दुख सीस परि सहिये अजब सौं अजब ह्वै रहियेन कबहूँ नैंक मन डोलै सु पीय की प्रकति लै बोलै
वाजिद जी दादूपंथी
साखी
बिरह का अंग - बासर सुख नहिं रैन सुख ना सुख सुपने माहिँ
बासर सुख नहिं रैन सुख ना सुख सुपने माहिँसत-गुरु से जो बीछुरे तिन को धूप न छाँहि
कबीर
शबद
थोडा मिलना सुख घना मन में रहै हुलास
थोडा मिलना सुख घना मन में रहै हुलासबहुत मेल मिलाप से होय प्रीत का नास
ईष्वरदास
दोहा
नई रीति या पीत की पहलें सब सुख देह
नई रीति या पीत की पहलें सब सुख देहपाछैं दुख की जील में डार करै तन खेह
बरकतुल्लाह पेमी
छंद
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै सुख साज सनेह समोइ रही
मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै सुख साज सनेह समोइ रहीसुचि चीकनी चारु चुभी चित मैं भरि भौन भरी खुशबोइ रही
गंग
पद
प्रकीर्ण के पद - मोरे तो मन राम-चरण सुख-दाई
मोरे तो मन राम-चरण सुख-दाईजिन चरणन सों निकसी सुरसरि शंकर जटा समाई
मीराबाई
पद
सुख सागर में आय के मत जा रे प्यासा
सुख सागर में आय के मत जा रे प्यासाअजहुँ समझ नर बाबरे जम करत निरासा
कबीर
साखी
सेवक और दास का अंग अनराते सुख सोवना राते नींद न आय
अनराते सुख सोवना, राते नींद न आयज्यों जल टूटे माछरी तलफत रैन बिहाय
कबीर
गीत
सुख जो बरसात का क़िस्मत में न था मोरे बदाभरी वर्षा में वह परदेसी भयो मोसे विदा