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पद
कठिन साधना-पथ - गुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जाय
गुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जायगुरु प्यारे का मारग झीना कोह गुरुमुख जाय
शालीग्राम
साखी
सेवक और दास का अंग - 'कबीर' गुरू सब को चहैं गुरू को चहै न कोय
कबीर गुरू सब को चहैं, गुरू को चहै न कोयजब लग आस सरीर की तब लग दास न होय
कबीर
कृष्ण भक्ति संत काव्य
जम्भेश्वर
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शबद
गुरु ने मोहे झीनी बस्तु लखाई
गुरु ने मोहे झीनी बस्तु लखाईनाजुक राह बोझ सिर भारा हलके पार लँघाई
घीसा साहेब
सोरठा
तीन ग्रन्थि निरुपण तीन ग्रन्थि को भेद कहिये गुरु समझाय कै
तीन ग्रन्थि निरुपण तीन ग्रन्थि को भेद कहिये गुरु समझाय कैतुम मुख वांणी वेद ज्यूँ को त्यूँ समझाइए
स्वामी भगवानदास जी
शबद
मारू सोलहे महला 1- कुदरति करनैहार अपारा
कुदरति करनैहार अपारा ।। कीते का नाही किहु चारा ।।जीअ उपाइ रिजकु दे आपे सिरि सिरि हुकमु चलाइआ ।।
गुरु नानक
शबद
।। मारू सोलहे महला -1 ।। -असुर सघारण रामु हमारा ।।
असुर सघारण रामु हमारा ।। घटि घटि रमईआ रामु पिआरा ।।नाले अलखु न लखीऐ मूले गुरमुखि लिखु वीचारा हे ।।
गुरु नानक
शबद
।। भैरउ असटपदीआ महला 1 घरू 2 ।। -आतम महि रामु राम महि आतमु चीनसि गुर बीचारा ।
आतम महि रामु राम महि आतमु चीनसि गुर बीचारा ।अंम्रित बाणी सबदि पछाणी दुख काटै हउ मारा ।।
गुरु नानक
शबद
भेद बानी कोई सुनता है गुरु ज्ञानी गगन आवाज़ होती झीनी
भेद बानी कोई सुनता है गुरु ज्ञानी गगन आवाज़ होती झीनीपहले होता नाद बिन्दु से फेर जमाया पानी
कबीर
दोहा
गुरु पग निश्चै परसिये गुरु पग हृदय राख
गुरु पग निश्चै परसिये गुरु पग हृदय राख'सहजो' गुरुपग ध्यान करि गुरु बिन और न भाख
सहजो बाई
शबद
।। मारू सोलहे महला 1 ।। -आपे करता पुरखु बिधाता ।।
आपे करता पुरखु बिधाता ।। जिनि आपे आपि उपाइ पछाता ।।आपे सतिगुरू आपे सेवकु आपे स्रिसटि उपाई हे ।।
गुरु नानक
दोहा
सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार
सिख का माना सतगुरू गुरु झिड़कै लख बार'सहजो' द्वार न छोड़िये यही धारना धार
सहजो बाई
साखी
जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरू है हम नाहिं
जब मैं था तब गुरु नहीं अब गुरू है हम नाहीँप्रेम गली अति साँकरी ता में दो न समांंहि
कबीर
पद
आदेश कर गुरु कों जो गुरुन के गुरु कों ब्रह्म
आदेश कर गुरु कों जो गुरुन के गुरु कों ब्रह्मगुरु कों तासों सप्त सुर तीन ग्राम आवे सुर भर कों