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ग़ज़ल
दिल में उतरते हर्फ़ से मुझ का मिला पता तिरामो’जज़ा-ए-हुस्न-ए-सौत का ज़म्ज़मा-ए-सदा तिरा
अहमद नदीम क़ासमी
पद
हर्फ़ करे है क्या बद-ख़ू ईमान में दरवेशों के
हर्फ़ करे है क्या बद-ख़ू ईमान में दरवेशों केअल-फ़क़र-ओ-फ़क़ीरी आया है शान में दरवेशों के
कवि दिलदार
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पद
दिल-जमई कर क्या बैठा है सुना नहीं तूने ये सौत
दिल-जमई कर क्या बैठा है सुना नहीं तूने ये सौतआया है क़ुरआन के अंदर सब दम को है ज़ायक़-ए-मौत
कवि दिलदार
ना'त-ओ-मनक़बत
शाह अकबर दानापूरी
दोहा
उपदेश गुरू भक्ति का - पितु सूँ माता सौगुना सुत को राखै प्यार
पितु सूँ माता सौगुना सुत को राखै प्यारमन सेती सेवन करै तन सूँ डाँट उरू गार
चरनदास जी
पद
साधना का फल - अमी की बरखा हुई भारी भींज रही अतर सुत प्यारी
अमी की बरखा हुई भारी भींज रही अतर सुत प्यारीसजी जहँ तहँ कंवलन क्यारी शब्द गुल फूली फुलवारी
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क़िता'
लिल्लाह शाह-ए-उमम हो निगाह-ए-करम सुन लो मेरी सदावक़्त आख़िर है सूरत दिखा दो मुझे दीजो बिगड़ी बना
अब्र शाह वरसी
सूफ़ी शब्दावली
(ध्वनि) ׃पापों का अंधकार, जो क़ल्ब पर छा जाता है, और जिससे ईश्वरीय प्रकाश बंद हो जाता है.
दोहा
पीतम सौत सुंदर सही पर हमें भी तुमरे आस
पीतम सौत सुंदर सही पर हमें भी तुमरे आसभूले-भटके आओ गोसाईं कभी तो हमरे पास
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
मँगते हैं करम उन का सदा माँग रहे हैंदिन-रात मदीने की दु'आ माँग रहे हैं
ख़ालिद मह्मूद नक़्श्बंदी
ना'त-ओ-मनक़बत
हो गया जिस पर सदा तेरा करम या मुस्तफ़ाफिर कभी उस पर न आया कोई ग़म या मुस्तफ़ा