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साखी
बिरह का अंग - हँसो तो दुख ना बीसरै रोओं बल घटि जाय
हँसो तो दुख ना बीसरै रोओं बल घटि जायमनहीं माहीं बिसुरना ज्यों घुन काठहिं खाय
कबीर
दोहा
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेष
महि नभ सर पंजर कियो रहिमन बल अवसेषसो अर्जुन बैराट घर रहे नारि के भेष
रहीम
दोहा
रहिमन करि सम बल नहीं मानत प्रभु की धाक
रहिमन करि सम बल नहीं मानत प्रभु की धाकदाँत दिखावत दीन ह्वै चलत घिसावत नाक
रहीम
दोहा
विनय मलिका - कर्म फाँस छूटै नहीं थकित भयो बल मोर
कर्म फाँस छूटै नहीं थकित भयो बल मोरअब की बेर उबारि लो ठाकुर बंदीछोर
दया बाई
दोहा
मुँह दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीस
मुँह दिखलावे और छुपे छल-बल है जगदीसपास रहे हर न मिले इस को बिसवे बीस
बुल्ले शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
अदब कहता है सर के बल चलो राह-ए-मदीना हैहरीम-ए-शाह-ए-दीं शाह-ए-'अरब शाह-ए-मदीना है
ज़हीन शाह ताजी
दोहा
योमिनूना बिल-ग़ैब कूँ आँख मूँद मन पील
योमिनूना बिल-ग़ैब कूँ आँख मूँद मन पीलसीखो गुरु सों ये जुगत आँख-मिचौनी खेल
बरकतुल्लाह पेमी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कुछ दिनों पूर्व तक संतों का साहित्य प्रायः नीरस बानियों एवं पदों का एक अनुपयोगी संग्रह