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ना'त-ओ-मनक़बत
इम्तिहाँ देता है रन में जाँ-निसार-ए-फ़ातिमादेखता है अर्श से वो किर्दगार फ़ातिमा
महमूद अहमद रब्बानी
शे'र
कोई मर कर तो देखे इम्तिहाँ-गाह-ए-मोहब्बत मेंकि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-क़ातिल हयात-ए-जावेदाँ तक है
बेदम शाह वारसी
शे'र
इम्तिहाँ-गाह-ए-वफ़ा में तू भी चल मैं भी चलूँआज ऐ शमशीर-ए-क़ातिल मैं नहीं या तू नहीं
मुज़तर ख़ैराबादी
शे'र
हश्र के दिन इम्तिहाँ पेश-ए-ख़ुदा दोनों का हैलुत्फ़ है उनकी जफ़ा मेरी वफ़ा से कम रहे
मिर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
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ग़ज़ल
मिरी फ़ितरत वफ़ा है दे रहा हूँ इम्तिहाँ फिर भीवो फ़ितरत-आश्ना है और मुझ से बद-गुमाँ फिर भी
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
रहरवन-ए-जादा-ए-हक़ हैं मगर साबित क़दमहै बहुत सब्र-आज़मा ये इम्तिहान-ए-कर्बला
शाह आयतुल्लाह क़ादरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
राह-रौ ता देव बीनी बा-फ़रिश्त: दर मसाफ़ज़े-इम्तिहान-ए-नफ़्स-ए-हिस्सी चंद बाशी मुम्तहन