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ना'त-ओ-मनक़बत
क़ल्ब-ओ-जाँ ईमाँ-ओ-दीं होश-ओ-ख़िरद जाह-ओ-हशमहो चुके हैं सब के सब नज़्राना-ए-शाह-ए-रुसुल
क़ातिल अजमेरी
ग़ज़ल
मिरा दम घुट के मक़्तल में तन-ए-बिस्मिल से निकलेगाफ़ुग़ाँ मुँह से न निकलेगी न नाला दिल से निकलेगा
हशम लखनवी
सलोक
फ़रीदा सो दर सच्चा देह जित मन लबु जाह
फ़रीदा सो दर सच्चा देह जित मन लबु जाहराज माल कह खउ अमालन वच लिखाह
बाबा फ़रीद
सलोक
फ़रीदा सो दर सच्चा सेव तूँ जितु मुकलूब नी जाह
फ़रीदा सो दर सच्चा सेव तूँ जितु मुकलूब नी जाहरिज मस्सतक हड खउ अ'मल न विकन खाह
बाबा फ़रीद
दोहरा
ए दिल ! तूं दिलबर दे बदले
ए दिल ! तूं दिलबर दे बदले, सौ मेहना कर कर मारी ।जां मनसूर चढ़ाया सूली, इह गल लाई कर प्यारी ।