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चौपाई
अखरावती - भरमि भरमि मूआ संसारा बिरले काहू तंतु बिचार:
जो कहते जिव भौजल पापाएको जिव उन नाहिं उबारा
कबीर
गूजरी सूफ़ी काव्य
फूल और माली
जिस बू लूँ सूंघन जाऊँ तिस बास तुम्हारा पाऊँकर हारना कैसूँ गुल लाऊँ
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
वही वही वही
जियूँ फूल कली रंग रुली वही जिऊँ नबी मोहम्मद अली वहीत्यूँ अली मोहम्मद वली वही
शाह अली जीव गामधनी
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गूजरी सूफ़ी काव्य
लैला और शीरीं
छोड़ूँ लोकाच लडाई कान करो ये प्रेम-कहानीतुम्हों तुम्हारी शीरीं भावे मुज कूँ मेरी लैला सुहानीं
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
अली मोहम्मद रात बुलाया
अली मोहम्मद रात बुलायाहँस हँस अपने सेज चढाया
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
जिन्हों मन प्रेम का भटका
जिन्हों मन प्रेम का भटकातिलें तिल नेह का खटका
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
खिले फूल होर मीठा दानाँ
खिले फूल होर मीठा दानाँवही अली हँस करे बखानाँ
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
हज जाऊँ हूँ कि द्वारका
हज जाऊँ हूँ कि द्वारकाघर कोई न देखूँ यार का
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
रे भाइयो हूँ सूँ करूँ
ये जीव तो रहता नहीं होर मन दुख सहता नहींको जाए पिउ कहता नहीं रे भाइयो हूँ सूँ करूँ
शाह अली जीव गामधनी
गूजरी सूफ़ी काव्य
दुई वजूद को मौजूद होना
दुई वजूद को मौजूद होनाये तो बात मुहाल है लोकाँ