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दोहा
अपनी गाँठ कौड़ी नहीं पिरोहनी हैं दीन-दयाल
अपनी गाँठ कौड़ी नहीं पिरोहनी हैं दीन-दयाल'औघट' जग में धनी का दासी होत नहीं कंगाल
औघट शाह वारसी
सलोक
फ़रीदा चुड़ेली स्युं रत्या दुनिया कूड़ा भेत
फ़रीदा चुड़ेली स्युं रत्या दुनिया कूड़ा भेतएनी अखीं देखद्यां उजड़ वंञह कूड़ा खेत
बाबा फ़रीद
सलोक
फ़रीदा नेहु ता लब केहा लब ता कूड़ा नेहु
फ़रीदा नेहु ता लब केहा लब ता कूड़ा नेहुकिचर तांईं रखीऐ तुटे झूम्बर मेहु
बाबा फ़रीद
ग़ज़ल
इ'श्क़ ने जकड़ा है मुझ को इस कड़ी ज़ंजीर सेजिस के हल्क़े खुल नहीं सकते किसी तदबीर से
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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ग़ज़ल
वही बज़्म है वही मय-कदा वही मय-कदा का मक़ाम हैमगर एक उन के न होने से न वो सुब्ह है न वो शाम है
अख़्तर महमूद वारसी
ग़ज़ल
ज़मीन-ए-मय-कदः अर्श-ए-बरीं मा’लूम होती हैये ख़िश्त-ए-ख़ुम फ़रिश्ते की जबीं मा’लूम होती है