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गूजरी सूफ़ी काव्य
जिकरी ब-शौक़ दिली न जिगरी
ये बात अख़ूँ किस निड़ी रेहूँ कोयल जैसी काली रे
क़ाज़ी महमूद दरियाई
राग आधारित पद
छा रही ऊदी घटा जियरा मोरा घबराए है
छा रही ऊदी घटा जियरा मोरा घबराए हैसुन री कोयल बावरी तू क्यूँ मल्हारें गाए है
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
भिक्षु-दानी प्यासा पानी दरिया सागर जल गागरगुलशन ख़ुश्बू कोयल कूकू मस्ती दारू मैं और तू
जावेद अख़तर
ना'त-ओ-मनक़बत
है तुझी से कूक कोयल की गुलिस्ताँ में बहारऔर दरिया में रवानी ख़ालिक़-ए-कौन-ओ-मकाँ
सद्दाम हुसैन नाज़ाँ
पद
विरह के पद - अरीकित जाऊँ री सखी री मेरा पिया बिना जीवरो उदास
अरीकित जाऊँ री सखी री मेरा पिया बिना जीवरो उदासबोलत कोयल कूक पुकारी जैसे कंठ गल पास
मीराबाई
कलाम
कोयल कूकी मौज-ए-सबा ने पाँव में घुंघरू बाँध लिएप्यार का नग़्मा छेड़ रहा है आज कोई शहनाई में
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
मअ'न जब टूटती रातों में कोयल कूक उठती हैतो मेरे दिल में क्यूँ मौहूम सी इक हूक उठती है
अहमद नदीम क़ासमी
कृष्ण भक्ति सूफ़ी कलाम
अमवा डाल पे कोयल बोले सुन सुन मनवा ले हचकोलेपवन चले पुरवय्या अब तो तुझ बिन मोसे रहा न जाए