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पद
चौरासी में फिरते-फिरते उत्तम नरदेह पाया
चौरासी में फिरते-फिरते उत्तम नरदेह पायाभूला भूला फिरे दिवाना अबहू समज ना आया
देवनाथ महाराज
दोहा
प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लाल
प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लालचकमक जुग जल में रहै अगन न तजै 'जमाल'
जमाल
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पद
मेरी माधव चरन सु प्रीत
मेरी माधव चरन सु प्रीतजो चाहे सो मुक्ति धंडे मैं चाहूँ रति रीत
गुलाब राय महाराज
सोरठा
श्री गुरु सन्त प्रताप वरनौं वुद्धि विलास कछु
श्री गुरु सन्त प्रताप वरनौं वुद्धि विलास कछुतजूं आंन को जाप जग जोई सोई सही
स्वामी भगवानदास जी
साखी
गुप्त रूप जहां धारिया, राधास्वामी नाम।
गुप्त रूप जहां धारिया, राधास्वामी नाम।बिना मेहर नहिं पावई, जहां कोई बिसराम।।
शिवदयाल सिंह
साखी
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।
बैठक स्वामी अद्भुती, राधा निरख निहार।और न कोई लख सके, शोभा अगम अपार।।
शिवदयाल सिंह
साखी
संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।
संत दिवाली नित करें, सत्तलोक के माहिं।और मते सब काल के, योंही धूल उड़ाहिं।।
शिवदयाल सिंह
साखी
मोटे जब लग जायं नहिं, झीने कैसे जाय।
मोटे जब लग जायं नहिं, झीने कैसे जाय।ताते सबको चाहिये, नित गुरु भक्ति कमाय।।
शिवदयाल सिंह
साखी
मोटे बन्धन जगत के, गुरु भक्ति से काट।
मोटे बन्धन जगत के, गुरु भक्ति से काट।झीने बन्धन चित्त के, कटें नाम परताप।।
शिवदयाल सिंह
पद
चेतावनी -घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।
घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।बिना देश झांकत रही, सब मर्म भुलानी।।
शिवदयाल सिंह
पद
आत्मशुद्धि - चूनर मेरी मैली भई, अब कापै जाऊं धुलान ।।
चूनर मेरी मैली भई, अब कापै जाऊं धुलान ।।घाट घाट मैं खोजत हारी, धुबिया मिला न सुजान।।
शिवदयाल सिंह
पद
अनाहत नाद -मुरलिया बाज रही कोइ सुने संत धर ध्यान।।
मुरलिया बाज रही कोइ सुने संत धर ध्यान।।सो मुरली गुरु मोहिं सुनाई लगे प्रेम के बान।।
शिवदयाल सिंह
पद
साधना-परिचय -घर आग लगावे सखी, सोइ सीतल समुंद समावे।।
घर आग लगावे सखी, सोइ सीतल समुंद समावे।।जड़ चेतन की गांठ खुलानी, बुन्दा सिन्ध मिलावे।।