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ना'त-ओ-मनक़बत
दर-ए-मुर्शिद से दिल के तार जब टकराने लगते हैंतसव्वुर में ज़ियारत के मज़े हम पाने लगते हैं
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
ना'त-ओ-मनक़बत
कभी धरती से जाता है कभी अम्बर से जाता हैपयाम-ए-हक़ ज़माने में हर इक मंज़र से जाता है
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐसा हुआ न कोई भी शाह-ए-ज़मन के बा'दआया हो लौट कर जो ख़ुदा से मिलन के बा'द
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
ना'त-ओ-मनक़बत
औघट शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
तिश्नगी का होंटों से नाम जब मिटा डालाएक नन्हे असग़र ने कर्बला हिला डाला
ख़ालिद नदीम बदायूँनी
कलाम
अपने दीवाने को ज़ालिम इस तरह तड़पा न अबमस्त नज़रों से पिला कर कह भी दे दीवाना अब