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कलाम
अब जहाँ में कुछ नहीं है आरज़ू 'उल्वी' मुझेमरते दम हो सूरत-ए-मीरज़ा नज़र के सामने
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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सूफीनामा शब्दकोश
marja.a
मरजाمرجع
antecedent, A place to which a person or thing returns, asylum, place or refuge
रक्षा-स्थान, बचाव की जगह, पनाहगाह, वह संज्ञा जिसकी ओर कोई सर्वनाम फिरे।
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फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
फ़ारसी कलाम
ग़ुलाम-ए-इश्क़म व लुत्फ़-ओ-करम बहा-ए-मन अस्तकसे कि बन्द: ब-ख़्वानद मरा ख़ुदा-ए-मन अस्त
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
तजल्ली गर तिरी पस्त ओ बुलंद उन को न दिखलातीफ़लक यूँ चर्ख़ क्यूँ खाता ज़मीं क्यूँ फ़र्श हो जाती
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शे'र
अगर ये सर्द-मेहरी तुज को आसाइश न सिखलातीतो क्यूँकर आफ़्ताब-ए-हुस्न की गर्मी में नींद आती
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
सहर उस हुस्न के ख़ुर्शीद को जाकर जगा देखाज़ुहूर-ए-हक़ कूँ देखा ख़ूब देखा बा-ज़िया देखा
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
हम ने की है तौबा और धूमें मचाती है बहारहाए बस चलता नहीं क्या मुफ़्त जाती है बहार
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
शे'र
हम गिरफ़्तारों को अब क्या काम है गुलशन से लेकजी निकल जाता है जब सुनते हैं आती है बहार
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
चली अब गुल के हाथों से लुटा कर कारवाँ अपनान छोड़ा हाए बुलबुल ने चमन में कुछ निशाँ अपना