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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बाद-ए-मुश्क-बू ब-गुज़र सू-ए-आँ-निगारब-कुशा गिरह ज़े-ज़ुल्फ़श व बू-ए-ब-मन बयार
हाफ़िज़
शे'र
जुज़ तेरे नहीं ग़ैर को रह दिल के नगर मेंजब से कि तिरे इश्क़ का याँ नज़्म-ओ-नसक़ है
मीर मोहम्मद बेदार
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ दस्तत अज़ निगार सफेद-ओ-स्याह-ओ-सुर्ख़वे चश्मत अज़ ख़ुमार सफ़ेद-ओ-स्याह-ओ-सुर्ख़
अमीर ख़ुसरौ
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सलोक
भन्नी घड़ी सुवन्नवी टुटी नागर लज्ज
भन्नी घड़ी सुवन्नवी टुटी नागर लज्जअजराईल फरेसता कै घरि नाठी अज्ज
बाबा फ़रीद
कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ानाफ़साना-ए-ग़ैर इक हक़ीक़त हक़ीक़त-ए-ग़ैर इक फ़साना
कामिल शत्तारी
दोहा
'पेमी' तन के नगर में जो मन पहरा देय
'पेमी' तन के नगर में जो मन पहरा देयसोवे सदा अनंद सों चोर न माया होय
बरकतुल्लाह पेमी
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
पद
विरह के पद - मैं कैसे जाउँ श्याम-नगर घर दूर
मैं कैसे जाउँ श्याम-नगर घर दूररैन अँधेरी बीजल चमके नदियाँ वहे जल पूर
मीराबाई
ना'त-ओ-मनक़बत
अनवार बरसते हैं उस पाक नगर की राहों मेंइक कैफ़ का 'आलम होता है तैबा की मस्त हवाओं में